CAA Rules: नागरिक संशोधन विधेयक लागू होने से भारतीय मुस्लिमों पर क्या असर होगा | 2024
CAA Rules: सीएए का एक मुद्दा यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए मुस्लिमों को नागरिकता नहीं मिलेगी; इसके बजाय, गैर मुस्लिम जो इन तीन देशों से आए हैं, वे भारत के नागरिक बन जाएंगे।
Citizenship Amendment Act: CAA, जो दिसंबर 2019 में देश की संसद से पारित हुआ था, अब पूरे देश में लागू हो गया है, लेकिन सवाल है कि इसके लागू होने से आम भारतवासी पर क्या असर होगा। क्या सीएए से भारत के किसी हिंदू या मुस्लिम को कोई नुकसान होगा?
CAA क्या हैं और इसका मुस्लिमों पर कितना प्रभाव हैं?
आखिर CAA में क्या है जो मुसलमान इसका विरोध कर रहे हैं, और क्या ये विरोध एनआरसी का है, जिसे लागू करने के लिए सीएए बनाया गया था? सीएए, जो 11 मार्च 2024 को लागू हुआ, देश में क्या बदल गया? आज इस पर विस्तार से चर्चा होगी।
CAA का असर सिर्फ इतना है कि यह भारत में किसी भी धर्म को मानने वाले व्यक्ति पर कोई असर नहीं होगा। भारत के लोगों को हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी, जैन, बौद्ध या किसी अन्य धर्म का अनुयायी होना चाहिए। उन्हें इस सीएए से कोई लेना-देना नहीं है और इसका उनके दैनिक जीवन पर कोई असर नहीं होना चाहिए। अब प्रश्न है कि इसका असर किस पर होगा? 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों पर इसका असर होगा। सीएए के माध्यम से उन्हें भारत की नागरिकता मिलेगी, लेकिन इसमें एक पेच है. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए मुस्लिमों को नागरिकता नहीं मिलेगी, बल्कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई लोगों को नागरिकता मिलेगी।
CAA का भारतीय लोगों पर क्या असर होगा?
यही कारण है कि हम सभी, आप और हमारे पूर्वज सदियों से इस देश में रहते आए हैं और इसके नागरिक हैं, इसलिए CAA का आप या मैं कोई असर नहीं होगा। इसलिए इसका हम पर कोई प्रभाव नहीं है। हां, यह सिर्फ इतना होगा कि इन पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों की वजह से इस देश की आबादी कुछ अधिक होगी। अब वे इस देश के नागरिक हो जाएंगे और इसकी जनसंख्या में शामिल हो जाएंगे।
अब बात विरोध की है, तो इसका विरोध मुस्लिम समुदाय और कुछ निश्चित समूह से हो रहा है. वे चाहते हैं कि अगर बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान से आकर भारत की नागरिकता चाहते हैं, तो सरकार इसके लिए राजी नहीं है। यह सबसे बड़ी वजह है, हालांकि यह ऊपरी तौर पर दिखता है। National Register of Cities (NRC), जो अभी लागू नहीं हुआ है, असली वजह है।
विपक्षी दलों और कुछ मुस्लिमों का मानना है कि एनआरसी को लागू करने का पहला कदम CAA है। सीएए के साथ एनआरसी भी आ जाएगा। एनपीआर एनआरसी से पहले आएगा। यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर। ये एक सरकारी दस्तावेज है, जिसमें देश के सभी नागरिकों का नाम है। यह बताता है कि किस गांव, जिले, राज्य और देश भर में कितने लोग रहते हैं। नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में नामों की सूची है जो पिछले छह महीने या उससे अधिक समय से किसी स्थान पर रह रहे हैं। इसमें नाम भी शामिल हैं,जो पिछले छह महीने से किसी जगह पर रह रहे हैं। इसमें अगले छह महीने या उससे अधिक समय तक उस क्षेत्र में रहने वालों का भी नाम शामिल किया जाता है।
इसमें देश के नागरिकों के अलावा विदेशियों के नाम शामिल हैं, जो पिछले छह महीने से किसी गांव, कस्बे या शहर में रह रहे हैं या अगले छह महीने तक रहने वाले हैं। 2010 में इसकी शुरुआत हुई। 2011 की जनगणना के लिए भी इस रजिस्टर बनाया गया था। इसके लिए, अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 के बीच सरकारी कर्मचारी लोगों के घर-घर गए और सूची बनाई। देश में हर दस वर्ष में जनगणना होती है। 2011 में अंतिम जनगणना हुई थी। कोरोनावायरस की वजह से 2021 की जनगणना नहीं होगी।इसलिए, अगली जनगणना से पहले राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट किया जाएगा। नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) तब आएगा। असम एनआरसी ने कहा कि इनमें से किसी भी एक को असम का नागरिक बनने के लिए चाहिए।
- 1951 की एनआरसी लिस्ट में नाम
- 24 मार्च, 1971 की वोटर लिस्ट में नाम
- जमीन और किराएदारी का कागज
- नागरिकता सर्टिफिकेट
- स्थाई निवास सा सर्टिफिकेट
- रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट
- पासपोर्ट
- एलआईसी की कोई पॉलिसी
- सरकार की ओर से जारी कोई लाइसेंस या सर्टिफिकेट
- सरकारी नौकरी या फिर नौकरी का सर्टिफिकेट
- बैंक या पोस्ट ऑफिस का सर्टिफिकेट
- जन्म प्रमाण पत्र
- बोर्ड या यूनिवर्सिटी में की गई पढ़ाई का सर्टिफिकेट
- कोई अदालती रिकॉर्ड या फिर उसका कार्यवाही का कागज
14 दस्तावेजों में से किसी भी एक पर अपना नाम या अपने किसी पुरखे का नाम होना चाहिए था, और ये दस्तावेज 14 मार्च 1971 से पहले के होने चाहिए थे। यदि इन चौबीस कागजातों में से किसी एक पर भी आपका नाम था, तो आप एनआरसी में शामिल हो गए; हालांकि, अगर किसी दस्तावेज में पुरखे (जैसे पिता, बाबा, दादा या उससे पुरानी पीढ़ी) का नाम था और अप्लाई करने वाले का नाम नहीं था, तो आपको कुछ सपोर्टिंग दस्तावेजों की आवश्यकता थी। NRC की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी इनकी सूची है। इसमें-
- बर्थ सर्टिफिकेट
- जमीन का कागज
- बोर्ड या यूनिवर्सिटी का सर्टिफिकेट
- बैंक, एलआईसी या पोस्ट ऑफिस का रिकॉर्ड
- शादीशुदा महिला के लिए सर्किल ऑफिसर या जीपी सेक्रेटरी का सर्टिफिकेट
- मतदाता सूची में नाम
- राशन कार्ड
- कानूनी रूप से वैध कोई और दस्तावेज
यदि असम का कानून पूरे देश में लागू हो, तो इन कागजातों के आधार पर कोई भी अपनी नागरिकता का दावा कर सकता है। CAA की सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिमों को होगी क्योंकि गैर मुस्लिमों को जो कोई कागज नहीं है, वह इस देश के नागरिक बन जाएगा, लेकिन मुस्लिमों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। ऐसे में उन्हें अपनी नागरिकता खुद से साबित करनी होगी। बेहतर समझने के लिए असम का उदाहरण लें।
NRC की फाइनल लिस्ट 31 अगस्त 2019 को असम में आई। इसमें शामिल करीब 19 लाख लोगों के नाम नहीं थे, जिन्होंने अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाया था। यही कारण है कि वे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और फॉरेन ट्रिब्यूनल का चक्कर काटना पड़ेगा। इसकी प्रक्रिया अभी चल रही है। जब प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, कुछ लोगों को नागरिकता मिल सकेगी, जो किसी भी धर्म के लोगों से हो सकते हैं।CAA के माध्यम से गैर मुस्लिम नागरिकों को नागरिकता दी जाएगी। मुसलमानों को क्या होगा? इसलिए यह अभी स्पष्ट नहीं है। असम में बने डिटेंशन सेंटर का मतलब है कि जो भी इस देश का नागरिक नहीं बन पाएगा, उसके लिए वही स्थान होगा।
असम के उदाहरण से पता चलता है कि देश भर में मुसलमान डर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी नागरिकता का दावा करना है। 1600 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी सरकार ने असम के 3.29 करोड़ लोगों का सही वेरिफिकेशन नहीं करवा पायी, तो देश में लगभग 140 करोड़ लोगों का वेरिफिकेशन कैसे सही होगा? बाकी, ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुस्लिम लोगों को परेशानी होगी। जो लोग गैर मुस्लिम नहीं हैं, उन्हें भी अपने कागज-पत्तर लेकर सरकारी कार्यालयों में घूमना होगा और अधिकारियों को बताना होगा कि वे इस देश के नागरिक हैं। सीएए गैर मुस्लिमों की मदद करने के लिए है, अगर वह नहीं कर सका। मुस्लिम लोगों, यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वे क्या करेंगे। अब एनआरसी पर भी चर्चा नहीं होगी, लेकिन CAA लागू होने के बाद एनपीआर और एनआरसी पर चर्चा होगी क्योंकि सिर्फ CAA से कोई समस्या नहीं होगी। अकेले एनआरसी से भी कोई समस्या नहीं होगी, लेकिन सीएए और एनआरसी एक साथ आ गए तो मुस्लिमों को ही परेशानी होगी।