तमाम शहर के रस्ते सजा दिएं जाएं
हम आ गए हैं तो कांटे बिछा दिए जाएं
कतील शिफाई का ये शेर पूर्व मुख्यमंत्री, वसुंधरा राजे पर सटीक बैठ रह है। हालात यह कह भी रहे हैं कि वसुंधरा राजे की राहों में कांटे बिछ चुके हैं। राज्य में भाजपा सरकार बन चुकी है। बावजूद इसके क्या अभी भी यह लगता है कि पूर्व सीएम और भाजपा की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री पद की उम्मीद नहीं छोड़ी है। राज्य में भाजपा सरकार बन जाने के बावजूद वह अपनी शर्तों पर और अपनी जिद पर अभी भी टिकी हुई है। उनकी गतिविधियों, उनके सधे कदमों से तो राजनीति के विशेषज्ञ यही मान रहे है।
पांच से सात जनवरी तक प्रधानमंत्री और ग्रहमंत्री जयपुर में हों और पांच जनवरी की शाम जयपुर में पीएम भाजपा मुख्यालय में विजयी विधायकों, मंत्रियों, पार्टी पदाधिकारियों से मुलाकात कर रहे हों और वहां वसुंधरा राजे नहीं हो तो सियासी अटकलों का जोर पकडना लाजिमी था। माना जा रहा है कि अपनी अनुपस्तिथी दर्शाकर खामोशी से उन्होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह तक अपना संदेश पहुंचाने का पूरा प्रयास कर दिया है। वसुंधरा की छवि शुरू से ही यही बनी है कि जो उनको ठीक नहीं लगता, उसके बारे में वो सीधे सीधे और साफ साफ ये बोल देती हैं कि ये गलत है… ये सही नहीं हैं।
दूसरी ओर समझा जा रहा है कि राज्य विधानसभा चुनाव पूर्ण बहुमत के साथ जीत लेने के बाद बीजेपी के रास्ते में अब कोई रोड़ा नहीं बचा है तो फिर वसुंधरा राजे की परवाह करने की कोई बड़ी वजह नहीं बनती है।
3 दिसंबर, 2023 को विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद सबसे ज्यादा हलचल राजस्थान में देखने को मिली थी. जब वसुंधरा राजे ने की ओर से अचानक अलग रास्ता अपनाया लिया। तीन दिसंबर 2023 को चुनाव परिणाम आते ही सबसे पहले प्रेस कॉन्फ्रेस कर दी फिर खबर आई कि शाम को ही 20 बीजेपी विधायक वसुंधरा राजे से मिलने उनके घर पहुंचे हैं. बाद में ये संख्या बढ़ कर 25 बतायी जाने लगी थी, और आखिर तक 70 विधायकों के वसुंधरा राजे के संपर्क में होने का दावा भी किया गया। शायद ऐसे कदमों से मोदी-शाह की नजर में उनको तो कमजोर कर दिया।
जानकारों की मानें तो चुनावों के दौरान बीजेपी नेताओं को साफ साफ निर्देश था कि वसुंधरा राजे के सम्मान में कोई कोताही नहीं बरतनी है, लेकिन उनसे कोई भी निर्देश लेने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है। अब तो बीजेपी चुनाव जीत चुकी है, तो फिर अब भला वसुंधरा राजे की किस बात की परवाह होगी।
2023 के विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे की स्थिति देख कर यही लगता है कि संघ ने भी अपने हाथ पीछे खींच लिये हैं. अब वसुंधरा राजे को भी वैसे सपोर्ट नहीं मिल रहा – और जहां तक 2024 की बात है, जब सारा जोर लोकसभा चुनाव में मोदी की वापसी पक्की करने पर हो तो वसुंधरा पर कौन ध्यान दे|