शहर की स्कूल बिल्डिंगेंफायर सेफ्टी के नियमों पर कितनी खरी
हादसा कभी भी हो सकता है, कहीं भी हो सकता है, हादसों का कोई वक्त तय नहीं है लेकिन समय रहते अगर थोडी सी जागरुकता दिखाई जाए तो किसी हद तक इस पर काबू पाया जा सकता है।
हाल ही में पंचशील स्थित सी ब्लॉक सतगरु आरकेड नामक बिल्डिंग में आग लगने से हडकंप मच गया। आग लगने की वजह शॉट सर्किट बताया गया। फायर सेफ्टी के पर्याप्त उपकरण भी मौजूद थे लेकिन इनके ऑपरेटर वहां मौजूद नहीं थे। इसी बिल्डिंग में नर्सरी के बच्चों का एक स्कूल भी संचालित है। सतगुरु लिटिल स्कूल जो हादसे के मात्र आधे घंटे पहले ही छूटा था। मान लो अगर यह हादसा स्कूल के दौरान होता तो जाने कितने मासूमों को हादसे का शिकार होना पडता। इसी बिल्डिंग में कॉल सेंटर के ऑफिस भी चलते हैं जिनहे ऑफिस की छत पर चढकर अपनी जान बचानी पडी।
आपातकालीन ना तो खिडकी थी और ना दरवाजा। अगर होता तो उन्हे यूं छत पर चढकर अपनी जान नहीं बचानी पडती। आग के फैलने और फायर ब्रिग्रेड के पहंुचने में बीस मिनट का फासला था जबकि आग की कोई रफ्तार नहीं होती। अगर गौर करें तो सूरत, कोटा, दिल्ली जैसे हादसे शायद हम भूल गए। सूरत के तक्षशिला कॉम्प्लेक्टस में 24 मई 2019 में हुए हादसे में कम से कम 19 छात्रों ने छलांग लगाकर कूदने की कोशिश में अपनी जान गवांई और कई तो दम घुटने से मर गए जिनमें एक अध्यापक भी शामिल थे। दूसरा दिल्ली के मुखर्जी नगर में 15 जून 2023 में एक बडा हादसा हुआ था जहां कम से कम 60 छात्र घायल हुए। मतलब एक बडी जनहानि होने से बची थी। अब हम बात करते हैं कोटा की जिसे कॉंिचंग हब भी कहा जाता है। 5 अक्टोबर 2019 को एक निजी कॉंिचग सेंटर में आग लग गई थी जिसके कारण कई छात्र दम घुटने के कारण बेहोशी की हालत में पाए गए।
अब सवाल यह उठता है कि अजमेर में सतगुरु इंटरनेशनल जैसे बडे ग्रुप ऐसी गलती कैसे कर सकते हैं जबकि उन्हे कई जगहों का अनुभव है। बात करें अजमेर के प्रशासन की तो वो किन तथ्यों के आधार पर एनओसी जारी करते हैं। बात सिर्फ सतगुरु की ही नहीं है अजमेर में ऐसे कई कोचिंग सेंटर, स्कूल और कॉलेज मौजूद हैं जहां सेफ्टी उपकरण नाममात्र हैं। कई लोगों ने तो अपने घरों में ही छोटे बच्चों के स्कूल खोल दिए हैं। कम फीस में पेरेंट्स अपनी गली मौहल्ले के स्कूलों में दाखिला दिला देते हैं। अब ऐसे स्कूलों की जिम्मेदारी किसके भरोसे है। क्या शिक्षा अधिकारियों को इन पर शिकंजा नहीं कसना चाहिए। ऐसा हो ही नहीं सकता कि उच्च शिक्षा अधिकारियों को इनकी कोई खबर ना हो। मरुधरा टूडे आप से अपील करता है कि ऐसे बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड करने वाले गली मौहल्ले में चल रहे छोटे स्कूलों पर अपनी निगरानी रखें क्योंकि जब बडे शिक्षा संस्थान ही अपना बचाव नहीं कर पाते तो सैंकडों छोटे स्कूलों का क्या भरोसा कर सकते हैं।